कोरोना काल और शिक्षा प्रणाली मे परिवर्तन


शिक्षा ऐसी ताकत है जो जीवन मे सकारात्मक ऊर्जा का निर्माण करती है और भय, अंधकार, अज्ञान, अंधविश्वास, घृणा तथा हीन भावना से मुक्त करती है। वह अनंत है, ऊर्जा और उत्साह से भरी है, इसमें किसी प्रकार का अवसाद या किसी भी तरह की हताशा नहीं है।

शिक्षा मनुष्य की सोच व समझ को नवीन अर्थ प्रदान करती है जो उन्हें सकारात्मक परिणामों की ओर ले जाता है। जो व्यक्ति को मानसिक और शारीरिक समस्याओं से बचाते है। शिक्षा वर्तमान तथ्यात्मक परिस्थितियों के साथ समायोजन कर ते हुए, नवीन संभावनाओ का निर्माण करती है।

शिक्षा का मुख्य उद्देश्य सीखना है और जीवन की विभिन्न परिस्थितियों के साथ समायोजित होकर उसे संरक्षित करना है।कोविड काल ने शिक्षा के वास्तविक स्वरूप को ओर अधिक विस्तृत कर  दिया हैं। शिक्षा ही ऐसा साधन है जिसने वतर्मान मे समाज को विपरीत परिस्थितियों मैं भी उर्जा प्रदान की है।

कोविड 19 और उसके निवारक उपायों के प्रभावों ने छात्रों, अभिवावकों और शिक्षकों के जीवन को प्रभावित किया है। चाहे जो भी हो अन्य क्षेत्रों के बावजूद, इस वैश्विक चुनोती ने शिक्षा के क्षेत्र मे अच्छा काम किया है, दुनिया भर मैं शिक्षा प्रणाली सिकुड़ कर एक इंटरनेट डिवाइस मे आ गई है। इस प्रक्रिया मे शिक्षण संस्थानों ने मीलो के दूरी से सीखने  की जिज्ञासा एवं  सिखाने की क्षमता का एहसास कराया है, जहां शिक्षक और छात्र एक दूसरे से मीलों की दूरी पर है फिर भी एक सॉफ्टवेयर के माध्यम से एक दूसरे के साथ है। सीखने  और सिखाने का पारस्परिक संबध अभी भी बरकरार है और पूरी तरह से सुरक्षित है।

इस वैश्विक महामारी के आगमन की खबर शुरू में न केवल छात्रों के लिए बल्कि शैक्षणिक संस्थानों के लिए चुनोती महसूस हुई। परन्तु इसके प्रभाव ने शिक्षण और सीखने की प्रक्रिया को सहेज कर रखा है। यदपि सीखने एवं सीखने  की प्रक्रिया के दौरान छात्र एवं  शिक्षक की वास्तविक उपस्थिति (शारिरिक एवं भाबनानत्मक) सर्वोत्तम होती है, परंतु वर्तमान में तकनीक द्वारा दी गई शिक्षा के प्रक्रिया ने उक्त उपस्थिति की जीवंतता को खो दिया है।

चिकित्सीय आपातकाल की आधिकारिक घोषणा के पश्चात दुनिया के विभिन्न देशों ने घातक बीमारी के प्रसार के रोकथाम हेतु,तालाबंदी लागू की थी। जिसने शिक्षा प्रक्रिया को बाधित कर दिया। दुनिया भर के तमाम संस्थानों ने उन तरीको को खोजना शुरू कर दिया, जिसके माध्यम से वे अपने हितग्राहियों के संपर्क मे रह सकें। विभिन अनुप्रयोगों की कोशिश की गई और जो अपनी  आवश्यकताओं के अनुसार सबसे उपयुक्त था, उसे संबंद्धित संस्थानों ने अपनाया। संसाधनों से परिपूर्ण संस्थाओं द्वारा इस अवसर का पूर्ण रूप से अपने हित संवर्धन हेतु  उपयोग किया गया, और जहां कुछ ही समय में एक पूरी आभासी शैक्षणिक संरचना निर्मित कर दी गई, जहां हमारे पास पारंपरिक कक्षाएं थी, मार्कर थे, डस्टर थे, अब वे सब आदृश्य हो गए है हालांकि यह सब वर्तमान मे स्क्रीन मे परिवर्तित हो गया है। इस तकनीक द्वारा छात्र एवं शिक्षक एक दूसरे को देख और सुन तो सकते है परन्तु यंत्रवत होने के कारण महसूस नही कर सकते और यही वास्तविकता शिक्षक और छात्र को आभासी दुनिया मे ले गया है।

यह परिवर्तन इतना तीव्र और कठोर था कि इसे पूरी तरह से समझने मैं सभी को समय लगा। वर्तमान में शिक्षण संस्थानों का स्थान ज़ूम, गूगल मीट, माइक्रोसॉफ्ट टीम्स एवं अन्य एप्स ने ले लिया है। वर्तमान में शिक्षक और विधार्थी दोनों को अपने घरों से क्रमशः कक्षाओं का संचालन एवं अध्ययन करना पड़ रहा है।

उच्च शिक्षा में शिक्षण की इस नई तकनीक को लागू करते समय हमें सदैव इस बात का ज्ञान होना चाहिए कि हम में से अधिकांश इस तरह की शिक्षा के लिए पर्याप्त रूप से सुसज्जित नही है। भारत जैसे देश मे अधिकांश आबादी में तकनीक द्वारा दी जाने वाली शिक्षा को चलाने के लिए बुनियादी ढांचे का आभाव है, उक्त हेतू उचित कार्यान्वन के लिये नवीन आयामों को खोजना आज की आश्यकता है। हमें समग्र रूप से विकसित राष्ट्र बनने औऱ शिक्षा प्रणाली को विकसित करने हेतु संतुलित दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है जहां हम आभासी व पारंपरिक शिक्षा का उचित समायोजन कर पाए।

डॉ संजय पटेल
कॉमर्स एवं प्रबंध विभाग

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