"हमारे बुजुर्ग"
"आ थाम के अंगुली तेरी , तुझको चलना सीख लाऊं, हाथ पकड़ना तू मेरा ,जब मैं बूढ़ा हो जाऊं" किसी कवि की यह मार्मिक पंक्तियां बयां कर रही है प्रत्येक अभिभावक के दिल की आवाज! माता पिता अपने बच्चों को बहुत लाड प्यार से पालते हैं उनके उज्जवल भविष्य की हर संभव कोशिश करते हैं और चाहते हैं कि बच्चे हमेशा उनकी आंखों के सामने उनकी आंख का तारा बन कर रहे !कदम कदम पर उनकी दुआएं अपने बच्चों के साथ होती हैं! जुग जुग जियो, दूधो नहाओ पूतो फलो जैसे आशीर्वाद सिर्फ और सिर्फ हमारे भारत देश में हमारे भारतीय समाज में ही दिए जाते हैं! इसी से यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि हमारे यहां माता-पिता और बच्चों के बीच का रिश्ता कितना समृद्ध और घनिष्ठ है ! भारत संस्कारों का देश है ! भारत में माता-पिता और बुजुर्गों के सम्मान की परंपरा रही है और हम हमेशा इसी बात पर गर्व करते रहे हैं कि हमारे यहां नई पीढ़ी पुरानी पीढ़ी की हमेशा इज्जत करती है उन्हें उपेक्षित नहीं करती और उनके अनुभवों की कद्र भी करती हैं! मगर बीते कुछ वर्षों में औद्योगिकीकरण और पश्चिमी सभ्यता ने कुछ हद तक हमारी संस्कृति में सेंध लगा दी है ! आज जिंदगी इतनी तेजी से चल रही है कि इस भाग दौड़ में क्या कुछ पीछे छूट रहा है किसी को फिक्र नहीं ! एकता का प्रतीक कहे जाने वाले संयुक्त परिवार टूट रहे हैं और एकल परिवार बढ़ रहे हैं ! जिसका परिणाम बच्चों में देखने को मिलता है ! क्योंकि उन्हें घर के अन्य रिश्तो जैसे दादा दादी, चाचा चाची, बुआ ,मौसी, नाना नानी आदि के साथ रहकर मौका ही नहीं मिलता रिश्तो को समझने का क्योंकि हर रिश्ता बच्चे को कुछ न कुछ सिखाता है ! संयुक्त परिवार में रहकर वह यह देखते हैं कि किस प्रकार उनके माता-पिता अपने माता-पिता का अपने बड़ों का ख्याल रखते हैं यही सीख उनके आगे काम आती है ! परंतु आज के परिवेश में बच्चे इन सब रिश्तो में सिर्फ वकतिया ही मिल पाते हैं जिसका एक कारण आज की लाइफ स्टाइल और व्यस्त जिंदगी भी है ! मगर सच्चाई यह है कि हमारे बुजुर्ग अपने तजुर्बे से अपने बच्चों की जिंदगी को सार्थक दिशा देने का माद्दा रखते हैं उनकी भलाई और उनकी शिक्षा व उज्जवल भविष्य के लिए अपनी सारी जिंदगी लगा देते हैं !आज ऐसे कई बुजुर्ग मिल जाएंगे जो अपनी संतान और परिवार की उपेक्षा व प्रताड़ना के शिकार हैं और कई तो एक पुत्र से दूसरे पुत्र के बीच ठोकर खाते भी देखे जा सकते हैं और कुछ अंधेरी कोठरी का शिकार होकर अपना जीवन यापन कर रहे है ! एक बात और कि आज का युवा उच्च शिक्षा या अपनी नौकरी हेतु बाहर विदेशों में जाना पसंद कर रहा है और फिर वही वह बस रहा है और जिस समय माता-पिता को बच्चों की जरूरत होती है उस समय वह अकेले पड़ जाते हैं ! सरकार, वृद्ध आश्रम ,स्वयंसेवी संस्थाएं जैसी चीजों की जरूरत ही ना पड़े यदि घर के बच्चे खुद अपने घर के बुजुर्गों का माता-पिता का ख्याल रखें सम्मान करें और उन्हें अकेलेपन का एहसास ना होने दें !क्योंकि यह बुजुर्ग वही लोग हैं जिनकी उंगली पकड़कर हमने चलना सीखा है!
हमीदा कुरैशी जनसंपर्क अधिकारी कैरियर कॉलेज भोपाल |
Beautifully written....
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